एक बार में अपनी बच्ची को पहली बार पहाड़ पर लेकर गया| थोड़ा ऊपर चढ़ने के बाद मैंने उसको रोका और कहा, “पीछे देखो”। जैसे ही उसने पीछे देखा, उसकी आँखों में मैंने एक चमक देखी। उसने चहक कर कहा, “पापा ये तो बहुत सुन्दर लग रहा है|” मैंने भी उसी की तरह खुश होते हुए कहा, अरे हाँ, कितना अदभुद नजारा है। फिर मैंने उससे पूछा, “अच्छा तुम बतलाओ कि यहाँ से तुम्हें क्या सुंदर लग रहा है?
उसने कहा, “पापा, जो तालाब हमको नीचे से पूरा नही दिखता था वह पूरा दिख रहा है। पेड़ कितने सुंदर दिख रहे हैं…।’
मैंने भी उसकी कथन में अपनी सहमति दी और फिर मैंने कहा कि मेरे विचार से जब हम और ऊपर जायेंगे तो हमे और सुंदर दिखेगा।
उसने तुरंत कहा, “पापा, मुझे नहीं पता, पर जो देख रही हूँ, वह बहुत ही सुंदर है।”
उसे नही पता था कि जैसे-जैसे हम पहाड़ पर ऊपर चढ़ते हैं, दृश्य और भी सुन्दर होते जाते हैं। यह बात जानते हुए भी उसकी बात का सम्मान करते हुए मैंने उससे कहा, ”हाँ, यहाँ से तो बहुत बढ़िया लग रहा है पर मेरे विचार से हमें थोड़ा और ऊपर चल कर देखना चाहिए।”
“हाँ, पापा, चलों और ऊपर चलते हैं”, यह कहते हुए बिटिया तुरंत तैयार हो गई।
पहाड़ की चढ़ाई की तरह भी हम सभी अपने जीवन के सफर में विभिन्न चरणों में होते हैं। जो अनुभव माता-पिता को होता है उससे अधिक दादा-दादी/नाना-नानी को होता है। हम अगर जीवन रूपी पहाड़ के मध्य में है तो हमारे माता पिता उसके लगभग ऊपर हैं और हमारे बच्चे तो उस पर चढ़ना अभी शुरू ही कर रहे हैं।
इस उदाहरण को ध्यान में रखते हुए हम उन 5 कदमों की बात करते है, जिससे आप आसानी से अपनी बात बच्चों तक पहुँचा सकते है।
कदम 1: अपनी स्थिति बदलें :- माता-पिता का अनुभव निश्चित ही अमूल्य है। वो वह देख सकते है जो अक्सर बच्चे नहीं देख पाते है। परन्तु हमे अपनी बात बच्चो तक पहुचानी है तो हमे उनके स्तर पर बौद्धिक और भावनात्मक रूप से जाना बेहद जरूरी है| जिस तरह से मैंने अपनी बेटी की बात से सहमत होते हुए कहा था – “अरे हाँ, कितना अदभुद नजारा है”। उस वक्त मैं उसके स्तर पर उतर कर उससे बात कर रहा था। उस वक्त मैंने उससे यह नही कहा कि अरे ये तो कुछ नही है ऊपर चलो तो और मजा आएगा।
कदम 2: बच्चों को अभिव्यक्त करने दें :- जिस तरह से मैंने उससे पूछा कि आपको क्या अच्छा लग रहा है और उसकी पूरी बात सुनी और उसे अपनी सहमति प्रदान की इसी हम अपने बच्चों को बोलने का पहला मौका दे, ध्यानपूर्वक सुनें और उनके विचारों को महत्वपूर्णता दें। उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि आप उनकी परवाह करते हैं और ध्यान से सुन रहे हैं।
कदम 3: उनके विचारों का सम्मान करें :- हमे उनके दृष्टिकोण से दुनिया देखनी चाहिए। जैसे उक्त उदाहरण में मैंने किया। उसको पहाड़ पर से जब अच्छा लग रहा था तब मैंने भी कहा मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है अर्थात हमें उनकी दृष्टि का सम्मान करना चाहिए, हमें उनके दृष्टिकोण में सुंदरता को मानने का समर्पण करना चाहिए, चाहे हमारे अनुभव हमें कुछ और ही इशारा कर रहे हों।
कदम 4:उन्हें चर्चा में शामिल होने का मौका दें :- अब जब आपको अपनी बात कहनी है तो इस लाइन का प्रयोग करे, “मेरे पास एक और विचार है; अगर आप इच्छुक हैं, तो मैं साझा कर सकता हूँ”| उन्हें स्वेच्छा से चर्चा में शामिल होने का अवसर दें। बच्चा आपको अपनी बात कहने का मौका देगा|
कदम 5: प्रेम पूर्वक अपने विचारों को साझा करें :- अपने विचारों को प्रेमपूर्वक बच्चे के साथ साझा करें। उन्हें उनके दृष्टिकोण और आपके दृष्टिकोण के बीच चयन करने का विकल्प दें, उनके निर्णय का पूरा समर्थन करें।
हम सभी इस बात को यक़ीनन मानेगे कि, हम सभी की जीवन यात्रा जिस गाड़ी पर चल रही है उस वाहन का एक ही चालक है “हम स्वयं”। अब यदि हम अपने वाहन के साथ-साथ औरों की गाड़ी के भी चालक बन जाते है तो दुर्घटना निश्चित हैं। आपके बच्चे की यात्रा पर विश्वास करें और जैसे एक महान कवि ने कहा, “बच्चों को अपने फलसफे लिखने दे, क्यों बचपन में हम उन्हें सबकुछ सीखा देना चाहते है”|
इन पाँच कदमों से माता-पिता प्रभावी रूप से संवाद करने की शक्ति प्राप्त कर सकते है। आईये हम इन कदमो को अपने जीवन मे अपनाये और बिना गुस्सा करे, चिलाये, और चिड़चिड़ाये, अपनी बात बच्चों तक पहुंचाए।